Sukoon by Taaruk Lyrics
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
काश ये होता नहीं, होता अलग
काश मैं खोता नहीं तेरी धड़क
पास तू मेरे तो क्या सही-ग़लत
खास तू मेरी, मेरी थी जब
काश ये होता नहीं, होता अलग
काश मैं खोता नहीं तेरी धड़क
ताश के पत्तों से बिखरे-बिखरे हम
जुड़ ना सके, मुड़ ना सके
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
काँच के टुकड़ों का अब बता मैं क्या करूँ?
है मेरा नसीब ये, या है मेरा गुरूर
कि ख़ुद की ही आँखों में अब और कितना गिरूँ
इस दिल से ही हूँ मैं नाराज़, ना तेरा कसूर
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
सोचा ना था पहले कभी
कि मेरा वजूद था तेरी वजह
सोचा ना था पहले कभी इक भी दफ़ा
कि मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
काश ये होता नहीं, होता अलग
काश मैं खोता नहीं तेरी धड़क
पास तू मेरे तो क्या सही-ग़लत
खास तू मेरी, मेरी थी जब
काश ये होता नहीं, होता अलग
काश मैं खोता नहीं तेरी धड़क
ताश के पत्तों से बिखरे-बिखरे हम
जुड़ ना सके, मुड़ ना सके
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
काँच के टुकड़ों का अब बता मैं क्या करूँ?
है मेरा नसीब ये, या है मेरा गुरूर
कि ख़ुद की ही आँखों में अब और कितना गिरूँ
इस दिल से ही हूँ मैं नाराज़, ना तेरा कसूर
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?
सोचा ना था पहले कभी
कि मेरा वजूद था तेरी वजह
सोचा ना था पहले कभी इक भी दफ़ा
कि मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
मुझ में तुझ को मिला था जो सुकूँ
ले गई क्यूँ मुझ से चेहरे का नूर?
छूटी तस्वीर तेरी, इसे कहाँ मैं रखूँ?
छीना तूने मुझ से क्यूँ मेरा सुकूँ?